पिछले 5 साल से अटकी पीजीटी संस्कृत की भर्ती को पूरा करवाने की मांग को लेकर PGT चयनित आवेदकों ने Sunday को Kurukshetra में एकजुट होकर ब्रह्मसरोवर पर रोष मार्च निकाला। PGT संस्कृत के चयनित आवेदकों ने कहा कि सरकार द्वारा भर्ती के बीच में नियमों से छेड़छाड़ की कोशिश ही कोर्ट केस का आधार बनी। 2015 की भर्ती में चहेतों को शामिल करने के लिए 2017 में संशोधन किया गया।
आवेदकों ने कहा कि संस्कृत को खात्मे की ओर ले जाने वाली सरकार के खिलाफ संस्कृत समाज एकजुट होकर लड़ रहा है। 6 वर्ष के कार्यकाल में भाजपा सरकार एक भी संस्कृत अध्यापक (Sanskrit Teacher) की नियुक्ति नहीं कर पाई। गीता के नाम पर हर साल करोड़ों का बजट खर्च करने वाली सरकार ने विद्यालय स्तर पर संस्कृत को निचले स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है। स्कूलों में जितने भी विषय पढ़ाए जाते हैं उन सभी की PGT व TGT Level की भर्ती हो चुकी है लेकिन एकमात्र संस्कृत विषय की भर्ती को जानबूझकर लटकाया जा रहा है। रोष मार्च में प्रदेश भर से चयनित पीजीटी संस्कृत आवेदक जुटे।
संस्कृत संघ के प्रधान संजीव कमोदा ने कहा कि सरकार की ओर से भर्ती को लेकर एक ही जवाब दिया जा रहा है कि मामला हाईकोर्ट में है। उन्होंने कहा कि 2015 में पीजीटी संस्कृत भर्ती निकालते समय जो मापदंड तय किए गए उनके अनुरूप भर्ती शुरू हुई। 2016 में टेस्ट हुआ और 2 साल तक सरकार से भर्ती पूरी करने की गुहार लगाई गई। 2017 में भर्ती से छेड़छाड़ करने की कोशिश शुरू हो गई और 27 जून 2017 को भर्ती के लिए बिना कोई एक्सपर्ट कमेटी बनाए एक संशोधन कर दिया गया। इसके बाद 2017 में डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन की गई।
2018 में इंटरव्यू लिए गए और एक जनवरी 2019 को फाइनल रिजल्ट भी घोषित हो गया। लेकिन तब तक 2017 में किया गया संशोधन भर्ती में रोड़ा बन चुका था और भर्ती कोर्ट में स्टे हो गई। संजीव ने कहा कि अगर सरकार को कोई संशोधन करना था तो या तो भर्ती से पहले करते या भर्ती को पूरा करने के बाद अगली भर्ती में करते। भर्ती के बीच में संशोधन के प्रयोग की क्या जरूरत थी, इस सवाल का सरकार जवाब दे। किसी भी डिग्री या डिप्लोमा की वैधता जांचने के लिए यूनिवर्सिटी एक्सपर्ट की एक कमेटी बनाई जाती है लेकिन इस मामले में कोई कमेटी नहीं बनी और बंद कमरे में कुछ नियम बने और उन्हें संशोधन का नाम दे दिया गया।
संजीव कमोदा ने बताया कि संशोधन में बीएड, शिक्षा शास्त्री (बीएड), शिक्षा शास्त्री, ओटी और एलटीसी जैसी सभी डिग्री को एक ही पैमाने से माप दिया गया। इसके अलावा एमए, आचार्य (एमए) व आचार्य की डिग्री को भी बराबर बता दिया गया। इनके सिलेबस व समयावधि की जांच किए बिना ही योग्य और अयोग्य को एक ही कसौटी पर माप दिया गया है। अब भी इसमें सुधार की गुंजाइश है। सरकार कोर्ट में एप्लीकेशन लगाए कि संशोधन आगामी भर्तियों के लिए हुआ है।